संस्कृति
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
1. इस देश में अनादि काल से जो समाज-जीवन रहा है, उसमें अनेक महान व्यक्तियों के विचार, गुण, तत्व, समाज-रचना के सिध्दांत तथा जीवन के छोटे-छोटे सामान्य अनुभवों से जीवन-विषयक एक स्वयंस्फूर्त स्वाभाविक दृष्टिकोण निर्माण होता है। वह सर्वसाधारण दृष्टिकोण ही संस्कृति है। यह संस्कृति अपने राष्ट्र की जीवन-धारणा है, विश्व की ओर देखने की पात्रता देनेवाली प्रेरणा-शक्ति है, एक सूत्र में गूँथनेवाला सूत्र है। भारत में आसेतु हिमाचल यह संस्कृति एक है। उससे भारतीय राष्ट्रजीवन प्रेरित हुआ है।
2. इन दिनों संस्कृति के नवतारुण्य को प्राय: 'पुनरुज्जीवनवाद' और 'प्रतिक्रियात्मक' होने की उपाधि दी जाती है। प्राचीन पूर्वाग्रहों, मूढ़ विश्वासों अथवा समाज विरोधी रीतियों का पुनरुज्जीवन प्रतिक्रियात्मक कहा जा सकता है, कारण कि इसका परिणाम समाज का पाषाणीकरण (फॉसिलाइजेशन) हो सकता है। किन्तु शाश्वत एवं उत्कर्षहारी जीवन-मूल्यों के नवतारुण्य को प्रतिक्रियात्मक नाम दे देना बौध्दिक दिवालियापन प्रकट करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।