आधारभूमि
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
अपने समाज का वास्तविक स्वरूप क्या है? कोई भी मनुष्य समुदाय त्रिशंकु जैसा निराधार लटकता नहीं रहता है। वह एक ठोस भूमि के आश्रय में रहता है। उसके आधार पर वह बढ़ता तथा पनपता है। उसके प्रति उसके मन में आत्मीयता का भाव रहता है। भारत या हिन्दुस्थान नाम से परिचित विस्तीर्ण भूमि खण्ड, हमारा आधार है। अपनी इस भूमि का रूप सामान्य मानचित्रों में बदलता हुआ दिखाई देता है। आज हमें जो चित्र देखने को मिलता है, वह कटा हुआ है। हर पाँच-दस वर्षों में उसका थोड़ा-थोड़ा हिस्सा लापता हो जाने का भी पता लग जाता है। अपने जो श्रेष्ठ कर्ता-धार्ता लोग हैं, वे बड़ी चतुराई से धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा हिस्सा शत्रु को लेने दे रहे हैं।