हमारी सभी भाषाएँ चाहे वह तमिल हो या बंगला, मराठी हो या पंजाबी हमारी राष्ट्र-भाषाएँ हैं। वे सभी भाषाएँ और उपभाषाएँ अनेकों खिले हुए पुष्पों के समान हैं, जिससे हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की वही सुरभि प्रसारित होती है। इन सभी के लिए प्रेरणा की स्रोत, भाषाओं की रानी देववाणी संस्कृत रही है। अपने वैभव एवं पावन साहचर्य के कारण वही हमारे राष्ट्रीय पारस्परिक व्यवहार के लिए एक महान संयोजक सूत्र है। किंतु दुर्भाग्य से आज उसका व्यवहार सामान्यरूप से नहीं होता। संपूर्ण देश की एक भाषा की समस्या के निराकरण के लिए जब तक संस्कृत स्थान नहीं ले लेती, सुविधा हेतु हमें हिंदी को प्रधानता देनी पड़ेगी।