इतिहास का यह बोध है कि जब तक समाज में अपने स्वत्व का अभिमान जागृत रहा और उसके कारण भूमि, धर्म, संस्कृति तथा राष्ट्र की एकात्मता की भावना विद्यमान रही, तब तक इस समाज की ओर आँख उठाकर देखने का भी साहस किसी को नहीं हुआ। परन्तु एकात्म जीवन का विस्मरण होते ही छोटे-बड़े अनेक स्वार्थ घुस आए, सत्ता-लोभ में राज्य आपस में टकराने लगे, इससे निर्बलता आई और गुलामी सहित अनेक प्रकार की दुर्दशा इस समाज को भोगनी पड़ी।
निष्कर्ष
इसलिए इतिहास का यह निष्कर्ष है कि यदि सब प्रकार की दुर्दशा को दूर हटाना है, तो संगठित और उत्तम समाज-जीवन खड़ा करना होगा। यही है सबसे उत्तम मौलिक सेवा, जो हम कर रहे हैं। राष्ट्र की सुसंगठित अवस्था निर्माण करना ही हमारा कार्य है। संघ-संस्थापक परम पूजनीय डाक्टर जी कहा करते थे कि हमें इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करना है। समाज के साथ एकात्मभाव स्थापित करके स्वत्वबोधा का जागरण किया, तो स्व-सामर्थ्य-युक्त समाज अपने ही बलबूते पर सब वैभव और यश प्राप्त कर लेगा।