1. कृत्रिम अनुशासन, रूखी-सूखी पेड़ की टहनी के समान निष्प्राण और टूटनेवाला होता है। जीवमान, चैतन्यमय व्यक्ति की स्वेच्छा से स्वीकृत और समष्टि रूप अहंकार से ही ओतप्रोत जो अनुशासन है, वही संगठित रूप से खड़ा रह सकता है। वही चिरंजीव होता है। जो अमृत-रस से भरा है, उसे मारने की जगत् में किसी की शक्ति नहीं। वह अपने बोझ से भी कभी नहीं टूटता।
2. व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का अर्थ मनमौजी होना कदापि नहीं। जो सबको मान्य हो और हितकारी हो उसी मर्यादा के अन्दर अपनी स्वतंत्रता का उपभोग प्रत्येक को करना होगा। स्वेच्छाचारिता के ढंग से चाहे जैसा उपभोग करते रहने की अनुमति उसे नहीं दी जा सकती।