विश्व हिन्दू परिषद् आसाम के द्वितीय सम्मेलन (मार्च 1970, जोरहाट) में बोलते हुए श्री गुरुजी ने यह आग्रह भी किया कि वनवासी बन्धु अगली जनगणना में स्वयं को हिन्दू लिखवाएँ। 'भिन्न-भिन्न पंथ या पहाड़ी जातियों का नाम लेकर जनगणना में उपस्थित न हों। कोई खासी हो, कोई ड़फना हो, मिकिर हो, नागा हो, कोई भी हो, सब मिलकर अपने को 'हिन्दू' इस नाम से ही लिखाएँ। हम सब हिन्दू हैं। ऊपर से दिखाई देने वाले वेश, भाषा, खानपान आदि के जितने भेद हैं, वे सब हमारी विविधताओं के अंग हैं। विविधता में एकता का सूत्र 'हिन्दू' है। इस सूत्र को ही हमें मजबूत करना है। सबको यही बताना है कि जैन हुआ तो भी हिन्दू है, बौध्द हुआ तो भी हिन्दू है, शैव भी हिन्दू है। एक समाज, एक परम्परा, एक संस्कृति, एक प्रतिष्ठा इस नाते से हम सारे हिन्दू हैं। ऐसी बड़ी सतर्कता रखकर हमें स्वत: को एक संगठित रूप में खड़ा करने की आवश्यकता है।'
आसाम में जो गिरिवासी रहते हैं, वे गो-मांस खाते हैं। हिन्दू को यदि यह बताया गया कि वे गो-मांस खाते हैं, तो उसके शरीर पर रोंगटे खड़े हो जाएँगे। कोई कहेगा कि वे कितना भयंकर पाप करते हैं। मुझे एक साधु पुरुष ने पूछा कि वे तो गो-मांस खाते हैं, उनको हिन्दू कैसे कहेंगे? मैंने कहा- वे लोग गो-मांस क्यों खाते हैं? क्या वे शौक से खाते हैं? क्या बडे प्रेम से खाते हैं? नहीं। उनको दूसरा कुछ खाने के लिए मिलता नहीं है। हम लोगों ने उनकी भोजन-व्यवस्था के लिए क्या किया? कोई शिक्षा दी है क्या? कोई उद्योग दिए हैं क्या? सम्मान से वे अपना जीवन-यापन करते हुए समाज का एक सुव्यवस्थित घटक बनें; ऐसी हमने उनकी शिक्षा-दीक्षा की कुछ व्यवस्था की है क्या? आज ही क्यों, पिछली कुछ शताब्दियों से हमने इस कर्तव्य का पालन किया है क्या? मैं कहूँगा कि नहीं किया है। अत: वे लोग जो गो-मांस खाते हैं वह उनका पाप नहीं, हमारा पाप है। उस पाप के भागीदार हम हैं। अनुकूलता होते हुए भी हम वहाँ उनको शिक्षा-दीक्षा देने के लिए गए नहीं। उनको समाज के अच्छे घटक बनाने के लिए किसी ने प्रयत्न किया नहीं; तो वह पाप हम सबको लगता है, उनको नहीं। क्या किसी ने उनको बताया है कि यह गौ अपने लिए बड़ी पुण्यदायी है, वंदनीय है, क्या किसी ने उनको बताया कि वे हिन्दू हैं? क्या उनके अन्त:करण में यह प्रेरणा जगाई है कि भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में उन्होंने जन्म लिया है? यह किसी ने उनको नहीं सिखाया। कोई उनके पास इस बात की शिक्षा देने नहीं पहुँचा कि गोरक्षा के लिए हम हिन्दुओं ने कितने त्याग किए हैं। इतना हम सबने उनके लिए नहीं किया।