प्राय: लोग किसी भयवश या एक दूसरे की देखादेखी सत्य बोलने से हिचकिचाते हैं। पर नि:स्वार्थ एवं निष्कलंक चरित्र वाले बिना किसी भय के अपनी बात कह देते हैं। एक राजा के दरबार में किसी दूसरे राज्य से एक बुनकर आया। उसने बहुत महीन और कोमल कपड़ा राजा को दिखाया। राजा ने उसे मुँहमाँगा दाम देकर खरीद लिया। यह देखकर उस राज्य के बुनकर को बहुत बुरा लगा। उसने कहा कि यदि उसे छह मास का समय और एक लाख रुपया दिया जाये, तो वह ऐसा महीन कपड़ा बुन सकता है, जैसा आज तक किसी ने न बुना हो। राजा ने स्वीकृति दे दी। बुनकर ने एक कमरे को चारों ओर से बन्दकर काम शुरू कर दिया। जब लोग वहाँ से गुजरते, तो करघे की आवाज आती। छह मास बाद वह कपड़ा लेकर दरबार में आया। उसने घोषणा कर दी कि यह कपड़ा राजा के अलावा केवल उन्हीं दरबारियों को दिखायी देगा, जो राजा के प्रति निष्ठावान होंगे। राजा को कपड़ा कहीं दिखायी ही नहीं दे रहा था। फिर भी उसने वाह-वाह की। दरबारियों को भी कपड़ा नहीं दिखा; फिर भी उन्होंने उसकी प्रशंसा की, क्योंकि कोई भी सच बोलकर राजा को नाराज नहीं करना चाहता था। राजा ने घोषणा कर दी कि एक सप्ताह बाद होने वाले उत्सव में वह इन्हीं को पहनकर शामिल होगा। अब दर्जी को बुलाया गया। बुनकर ने उसे भी अपने साथ मिला लिया था। उसने कपड़े सिलने का नाटक किया। बहुत महीन धागे से राजा के कपड़े तैयार हुए। उन्हें पहनकर वह शान से हाथी पर बैठकर उत्सव के लिए चल दिया। नगर की प्रजा राजा को निर्वस्त्र देखकर आश्चर्यचकित थी; पर मुँह कौन खोले ? शोभायात्रा बढ़ती जा रही थी; लेकिन एक बच्चे से नहीं रहा गया, वह जोर से चिल्लाया - देखो-देखो, राजा तो नंगा है। उसकी माँ ने उसे चुप कराने का प्रयास किया; पर वह चुप नहीं हुआ। यह देखकर नागरिकों का साहस जाग गया। वे भी कहने लगे - हाँ, राजा तो नंगा है। अब दरबारियों में भी हिम्मत आ गयी। वे भी बोल उठे - हाँ, राजा तो नंगा है। राजा ने जब सब ओर से एक ही बात सुनी, तो वह शर्म से पानी-पानी होकर राजमहल लौट गया। यही हालत अपने देश के नेताओं की है। भारत हिन्दू राष्ट्र है। इसे जानते तो सब हैं; पर किसी भय या स्वार्थ के कारण वे यह सच बोलने में संकोच करते हैं। संघ के संस्थापक पूज्य डा. हेडगेवार के मन में न कोई भय था न कोई स्वार्थ। इसलिए उन्होंने पहली बार स्पष्ट शब्दों में उद्धोष किया कि भारत हिन्दू राष्ट्र है। उनके इस साहस भरे उद्धेष से प्रभावित होकर करोड़ों लोग आज कह रहे हैं -हाँ, भारत हिन्दू राष्ट्र है।
सत्य सदा सम्मानित होता है
आजकल सर्वत्र राजनीति का बोलबाला है। राजनेता हर काम को वोटों के हानि-लाभ से तोलकर करते हैं। वे इस डर से सच नहीं बोलते कि इससे कोई वर्ग नाराज न हो जाये। श्री गुरुजी का विचार था कि ऐसी ढुलमुल भाषा बोलने वाले कुछ समय तक तो लाभ उठा सकते हैं; पर सच बोलने वालों का सदा सम्मान होता है। वे अपने साथ का एक प्रसंग सुनाते थे। एक बार उन्हें रेल से थोड़ी दूर जाना था। जब रेल आयी, तो वे एक डिब्बे में चले गये। वहाँ मुस्लिम लीग के एक प्रसिध्द नेता सीट पर अपना बिस्तर लगाये बैठे थे। उन्होंने बड़े आदर से अपना बिस्तर साफ किया और गुरुजी को बैठा लिया। उनके साथियों ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा। एक ने पूछ ही लिया - संघ वाले तो हमारे कट्टर विरोधी हैं। फिर भी आप उनके मुखिया को इतना आदर दे रहे हैं। मुस्लिम नेता ने कहा - हाँ, ये हमारे विरोधी हैं; पर ये अपनी बात हमेशा साफ-साफ कहते हैं। राजनेताओं की तरह बात को घुमा-फिरा कर नहीं बोलते। इसलिए इनसे हमें कभी धोखा नहीं होगा। जबकि वे राजनेता जो आज वोट के लालच में हमारा समर्थन कर रहे हैं, कल वोट के लिए हमारे विरोधी भी बन सकते हैं।
ईश्वर सर्वत्र है
हरिद्वार से गंगाजल लेकर उससे रामेश्वर में भगवान शंकर का अभिषेक करने का प्राचीन समय से ही बड़ा महत्त्व रहा है। महाराष्ट्र के प्रसिध्द संत एकनाथ जी अपने कुछ शिष्यों व संतों के साथ गंगाजल लेकर पैदल-पैदल रामेश्वर जा रहे थे। नगर, ग्राम, जंगल, पर्वत, रेगिस्तान आदि पार करते हुए वे चले जा रहे थे। रेगिस्तान में एक संकट उपस्थित हो गया। सब यात्रियों ने देखा कि मार्ग में एक गधा बुरी तरह धरती पर लोटपोट हो रहा था। उसे देखते ही सब समझ गये कि यह प्यास से तड़प रहा है। यदि उसे पानी न मिला, तो वह कुछ देर में मर जाएगा। पर यात्रियों के पास तो पानी के नाम पर केवल गंगाजल था। इसलिए सब उसे सहानुभूति से देखते रहे; पर एकनाथ जी ने अपनी काँवड़ उतारी और कलश में रखा सारा गंगाजल गधे को पिला दिया। गधे ने तृप्ति से उनकी ओर देखा और अपनी राह चला गया। सबने एकनाथ जी को टोका - यह आपने क्या किया; इतने कष्ट एवं परिश्रम से आप जो गंगाजल लाये थे, वह आपने गधे को पिला दिया। अब भगवान को क्या चढ़ायेंगे ? एकनाथ जी ने कहा – भगवान सर्वत्र है। रामेश्वर के शिवलिंग में जो भगवान हैं, वही इस गधे के अंतःकरण में भी है। यदि हम जल होते हुए भी इस मूक प्राणी को प्यासा मरने देते, तो भगवान भोलेशंकर हमें कभी क्षमा नहीं करेंगे। उनके साथ चल रहे अन्य संत तथा शिष्य एकनाथ जी के हृदय की विशालता देखकर दंग रह गये।
धैर्य बनाये रखें
अनेक लोग काम करते समय बहुत उतावले हो जाते हैं; वे चाहते हैं कि जो भी होना हो, तुरन्त हो जाए। लेकिन कार्यकर्ता के ध्यान में सदा अपना लक्ष्य और सफलता ही रहनी चाहिए। इस सम्बन्ध में श्री गुरुजी छत्रपति शिवाजी का यह प्रसंग सुनाते थे। बीजापुर के शासक आदिलशाह ने जब देखा कि शिवाजी अपना साम्राज्य बढ़ाते जा रहे हैं, तो उसने कई सूरमाओं को उन्हें परास्त करने भेजा। पर जो भी गया, वह मार खाकर ही लौटा। परेशान होकर आदिलशाह ने अपने सबसे मजबूत योध्दा अफजल खाँ को शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा लेकर आने को कहा। अफजल खाँ विशाल सेना लेकर चल दिया। मार्ग में उसने सैकड़ों मंदिरों को उध्वस्त किया। हजारों गायों की हत्या की। खेतों में खड़ी फसलों को आग लगा दी। महिलाओं को अपमानित किया। लोग शिवाजी को जाकर शिकायत करते थे; पर वे शान्त बैठे रहे। इससे अफजल खाँ का साहस बढ़ गया। उसने पंढरपुर का प्रसिध्द विठोबा का मंदिर और शिवाजी की कुलदेवी तुलजा भवानी का मंदिर भी तोड़ डाला। लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। कई लोग तो शिवाजी को भला-बुरा भी कहने लगे - कहाँ है वह हिन्दू रक्षक; कहाँ छिपा बैठा है; लगता है वह भी अफजल खाँ से डर गया है ? पर शिवाजी ने धैर्य नहीं खोया।
वे अपनी योजना से चल रहे थे। उन्होंने ऐसा वातावरण बनाया कि अफजल खाँ उनसे मिलने पहाड़ी पर स्थित प्रतापगढ़ के किले तक आ पहुँचा । वहाँ शिवाजी ने उसके पेट में बघनखा भोंककर उसे यमलोक पहुँचा दिया। केवल इतना ही नहीं, किले के आसपास छिपे सैनिकों ने उसकी सेना के एक आदमी को भी जीवित नहीं छोड़ा।
यदि शिवाजी धैर्य खो देते, तो वे सफल नहीं होते। इसलिए ध्यान सदा अंतिम लक्ष्य और सफलता की ओर ही रखना चाहिए।