कर्तव्यनिष्ठा
श्रीगुरुजी (हिंदी)   26-Oct-2017
काम के प्रति हमारी निष्ठा कैसी हो, इस संबंध में श्री गुरुजी तानाजी मालसुरे के बलिदान की कथा सुनाते थे। महाराष्ट्र में कोंडाना नामक एक प्रसिध्द किला है। वह मुगलों के अधिकार में था। एक बार माँ जीजाबाई ने उसे जीतकर देने की इच्छा शिवाजी के सम्मुख प्रकट की। बस, शिवाजी ने ठान लिया कि यह किला जीतना ही है। पर कोंडाना बड़े दुर्गम स्थान पर बना था। उसे जीतना आसान न था। शिवाजी ने अपने साथियों के नामों पर विचार किया, तो उन्हें तानाजी मालसुरे का नाम ध्यान में आया। वे हर प्रकार का खतरा उठाकर भी काम पूरा करने में निपुण थे। शिवाजी उन्हें बुलाने के लिए किसी दूत को भेज ही रहे थे कि तानाजी अपने बेटे राघोबा के विवाह का निमन्त्रण देने के लिए स्वयं ही वहाँ आ गये। शिवाजी ने सोचा कि तानाजी की व्यस्तता के कारण अब वे स्वयं कोंडाना जीतने जाएँगे। पर तानाजी ने शिवाजी को निश्चिन्त करते हुए कहा - महाराज, राघोबा का विवाह बाद में होगा, पहले कोंडाना किला जीता जाएगा। तानाजी ने पुत्र के विवाह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया और सेना लेकर आधी रात में कोंडाना दुर्ग पर धावा बोल दिया। भयंकर युध्द में तानाजी स्वयं मारे गये; पर किला उन्होंने जीत लिया।
 
युध्द के बाद शिवाजी ने कहा - गढ़ आया, पर सिंह गया। तानाजी की स्मृति में उस किले का नाम उन्होंने 'सिंहगढ़' कर दिया। कुछ समय बाद तानाजी के पुत्र का विवाह शिवाजी ने स्वयं बड़ी धूमधाम से किया।

मीठी वाणी का महत्त्व
संघ का कार्य करते समय समाज में अनेक लोगों से मिलना पड़ता है। ऐसे समय वाणी का संयम और विवेक बहुत आवश्यक है। हमें सत्य तो बोलना चाहिए; पर उसे किस प्रकार से बोलें, यह ध्यान रखना भी आवश्यक है। इस संबंध में एक बार श्री गुरुजी ने यह कहानी सुनायी थी। एक राजा ने स्वप्न देखा कि उसके सारे दाँत झड़कर गिर रहे हैं। उसने इसका अर्थ समझने के लिए एक प्रसिध्द ज्योतिषी को बुलाया। ज्योतिषी ने कहा - राजन, इसका अर्थ है कि आप अपनी ऑंखों से अपने पुत्र-पौत्रों आदि की मृत्यु देखेंगे। राजा ने नाराज होकर उसे जेल में डाल दिया। फिर एक अन्य ज्योतिषी को बुलाया गया। उसने स्वप्न का अर्थ बताते हुए कहा - राजन, आपकी आयु बहुत लम्बी है। आप अपने पुत्र-पौत्रों से भी अधिक समय तक जीवित रहेंगे। राजा ने उसे अनेक पुरस्कार देकर विदा किया। वस्तुत: दोनों ने बात एक ही कही थी; पर दोनों के कहने का ढंग अलग-अलग था। इसलिए अपनी बात कहते समय सही विधि, समय तथा वातावरण का भी ध्यान रखना चाहिए।
पुण्यभूमि भारत
कुछ लोग भारत को धरती का एक टुकड़ा मानते हैं; पर संघ की धारणा यह है कि यह पुण्यभूमि है। यहाँ अनेक बार स्वयं भगवान ने जन्म लिया है, इसलिए इसका कण-कण पावन है। यह समझाने के लिए श्री गुरुजी ने एक बार यह प्रसंग सुनाया। स्वामी विवेकानंद लगभग चार वर्ष तक विदेश में रहे। वहाँ उन्होंने लोगों के मन में भारत के बारे में व्याप्त भ्रमों को दूर किया तथा हिन्दू धर्म की विजय पताका सर्वत्र फहरायी। जब वे भारत लौटे, तो उनके स्वागत के लिए रामेश्वरम के पास रामनाड के समुद्र तट पर बहुत बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए। उनका जहाज जैसे ही दिखायी दिया, लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। पर स्वामी जी ने जहाज से उतरते ही सबसे पहले भारतभूमि को दंडवत प्रणाम किया। फिर वे हाथों से धूल उठाकर अपने शरीर पर डालने लगे। जो लोग उनके स्वागत के लिए मालाएँ आदि लेकर आये थे, वे हैरान रह गये। उन्होंने स्वामी जी से इसका कारण पूछा। स्वामी जी ने कहा - मैं जिन देशों में रह कर आया हूँ, वे सब भोगभूमियाँ हैं। वहाँ के अन्न-जल से मेरा शरीर दूषित हो गया है। अत: मैं अपनी मातृभूमि की मिट्टी शरीर पर डालकर उसे फिर से शुध्द कर रहा हूँ।

अनोखी हड़ताल
अपने देश में छोटी-छोटी बात पर धरना, प्रदर्शन, हड़ताल करना एक फैशन बन गया है। इससे देश को कितना नुकसान होता है, इसे कोई नहीं सोचता। श्री गुरुजी इनके समर्थक नहीं थे, वे इस संबंध में जापान का एक उदाहरण देते थे। द्वितीय विश्वयुध्द के बाद जापान पूरी तरह बरबाद हो गया। उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी; पर थोड़े ही समय में उसने फिर से पहले जैसी उन्नति कर ली। इसका कारण वहाँ के सामान्य नागरिक में व्याप्त देशभक्ति की भावना है। भारत से जापान की यात्रा पर गये एक नेता जी एक कारखाने में गये। वहाँ श्रमिकों से बात करने पर पता लगा कि वे लोग अपने वेतन आदि से असंतुष्ट थे। नेता जी ने कहा कि ऐसे में आप लोग हड़ताल कर काम ठप्प क्यों नहीं कर देते ? श्रमिकों ने उत्तार दिया - कारखाने का मालिक भी अपना है और देश भी। हड़ताल से दोनों का ही नुकसान होगा, इसलिए हम यह नहीं करते।
नेता जी ने पूछा - फिर आप लोग विरोध प्रदर्शन कैसे करते हैं ?
श्रमिकों ने उत्तर दिया - इसके लिए हम अपनी बाँहों पर काली पट्टी बाँधकर काम करते हैं। इससे मालिक हमारी भावना समझ जाता है और समस्या के समाधान का प्रयास करता है। श्री गुरुजी इस उदाहरण से समझाते थे कि हर नागरिक के मन में देशप्रेम की भावना जाग्रत करने से ही देश की उन्नति संभव है।